लेखनी प्रतियोगिता -08-Aug-2022 - पोत्री
दादा की जान होती पोत्री,
दादी की लाडली होती पोत्री।
घर की रौनक व शान होती पोती,
आंगन में मचाती खलबली पोती।
दादी मां लुटाती प्यार भर भर,
दादा खिलाए कचौड़ी मनभर।
चाहत होती घर पोते संग पोती आए,
आकर उनका घर आंगन वो महकाए।
खुले दिल से स्वीकार करते पोती को,
नहीं चाहते वह बांधे केवल धोती को।
उन्मुक्त गगन की शहजादी जब सैर करती,
दादी उसके लिए प्रभु से तब मनौती करती।
कन्या रूप में माता घर में जब आती,
मुस्कान पोत्री की सबके मन को भाती।
तुतलाती सी जब वो मचाती धमाचौकड़ी,
खेल-खेल में किसी को लगाती वो हथकड़ी।
कहती पुलिस में बड़ी होकर मैं जाऊंगी दादू,
चोरों, आतंकियों से डर कर कभी नहीं भांगू।
दादा दादी का तब गर्व से सीना फूल जाता,
उस शहजादी का मोह और बढ़ता जाता।।
#दैनिक प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
Punam verma
10-Aug-2022 11:31 PM
Nice
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Abhinav ji
10-Aug-2022 08:55 AM
Nice👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
09-Aug-2022 09:34 AM
बहुत ही सुंदर रचना
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